नवदुर्गा के नौ रूपों में से पहला रूप मा शैलपुत्री का है। पर्वतराज हिमालय की पुत्री होने के कारण इनका नाम शैलपुत्री पड़ा।
नवदुर्गा के पहले दिन होती है पूजा।
नवदुर्गा के नौ रूपों में से पहला रूप मा शैलपुत्री का है। पर्वतराज हिमालय की पुत्री होने के कारण इनका नाम शैलपुत्री पड़ा।
भगवान शंकर से हुआ है विवाह
शैलपुत्री जिन्हें माता सती का रूप माना जाता है। इनका विवाह भी भगवान शंकर से हुआ है। और बाद में ये भगवान शंकर की अर्धांगिनी भी बनी।
ऐसा है माता का स्वरूप।
माता का वाहन वृषभ है। इनके दाएं हाथ में त्रिशूल और बाय हाथ में कमल सुशोभित है।
कई और भी नाम है।
मा शैलपुत्री को कई और भी नाम जैसे सती, पार्वती, हेमवती और भवानी भी है।
काशी में स्थित है प्राचीन मंदिर।
माता शैलपुत्री का प्राचीन मंदिर काशी में स्थित है। जिस अलईपुर के नाम से जाना जाता है। नवरात्रि के पहले दिन यहां भक्तों की भारी भीड़ रहती है।
मंदिर के पीछे की कथा।
–कहते है एक बार जब माता किसी बात पर भगवान शिव से नाराज हो कर कैलाश से काशी आ गई। और जब शिव जी उन्हें मानने आए तो तो माता ने उनसे आग्रह किया के ये स्थान उन्हें प्रिय लग रहा है। वे यह से जाना नहीं चाहती। तब से ही माता काशी में विराजमान है।
मंदिर में होती है तीन बार आरती।
– यह एक ऐसा मंदिर है। जहां माता शैलपुत्री की दिन में तीन बार आरती होने के साथ ही उन्हें सुहाग का सामान भी चढ़ाया जाता है।
सफेद रंग है प्रिय।
माता को सफेद रंग अति प्रिय है। इसलिए नवरात्रि के पहले दिन अगर कोई भक्त सफेद रंग के वस्त्र पहन कर माता की पूजा और घटस्थापना करे तो माता की असीम कृपा प्राप्त होती है।